परिचय
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हेलो दोस्तों, आप सभी जानते हैं कि रमज़ान के महीने में सभी मुसलमान भाई बहन रोजा रखते हैं और एक पवित्रा और बरकत से भरा हुआ समय होता है अल्लाह ताला ने इस महीने में अपने सभी बंदो पर रोजा रखने को फर्ज करार दिया है.
रोज़ा रखने की दुआ
बिस्मिल्लाहि रहमानिर रहीम।नाऊज़ुबिल्लाहि मिन शैतानिर रहीम।अल्लाहुम्मा इंनी नौमितु लिललाहि व अश्हादु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु व अन्न मुहम्मदन रसूलुल्लाह।
अर्थ:”मैं अल्लाह की शरण में जाता हूं, वह दयालु और कृपाशील है।हे अल्लाह, मैं तुम्हारे लिए रोजा रखता हूं और यह स्वीकार करता हूं कि तुम ही एकमात्र ईश्वर हो और मुहम्मद तुम्हारे रसूल हैं।”रोज़ा रखने की यह दुआ सुबह के वक्त फज्र की नमाज़ के बाद पढ़ी जाती है। इस दुआ में रोज़ा रखने वाला व्यक्ति अल्लाह से अपने रोजे को स्वीकार करने की दुआ करता है।
दुआ का महत्व
रोज़ा खोलने की दुआ एक महत्वपूर्ण दुआ है। इस दुआ को पढ़ने से रोज़ा खोलने वाले व्यक्ति के गुनाहों को माफ़ होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, इस दुआ को पढ़ने से रोज़ा खोलने वाले व्यक्ति का मनोबल बढ़ता है और उसे अपने रोजे को सफलतापूर्वक पूरा करने की खुशी होती है।
दुआ का तरीका
रोज़ा खोलने की दुआ को निम्नलिखित तरीके से पढ़ा जाता है:
- सबसे पहले, हाथों को धोकर साफ करें।
- फिर, खड़े होकर या बैठे हुए, दोनों हाथों को सीने पर रखें।
- फिर, ऊपर लिखी हुई दुआ को ध्यान से पढ़ें।